आमतौर पर दिल्ली का मिंटो ब्रिज तब चर्चा में आता है, जब यहां पानी भरता है और यहां यातायात की समस्या होती है. ज्यादा बारिश होने के कारण यहां जाम हो जाता है, गाड़ियां फंस जाती हैं, मगर पिछले सप्ताह से देखा जा रहा है कि बिना बारिश के भी मिंटो ब्रिज पूरी तरह से भरा हुआ है. आखिर इसके पीछ वजह क्या हो सकती है?
देखा जाए तो मिन्टो ब्रिज पार होने के लिए लोगों को 15-20 मिनट लगता है. कई बार ऐसा होता है कि आधे घंटे से भी ज्यादा समय लगते हैं. जाम के कारण लोगों को परेशानी हो रही है.
इसकी खास वजह क्या है?
- मिन्टो ब्रिज में गड्ढे बहुत ही ज्यादा हो गए हैं. इस वजह से मिन्टो ब्रिज में जाम फंस जाता है.
- गड्ढों में पानी भरा रहता है, जिसके कारण टू व्हीलर आसानी से फंस जाते हैं.
- देखा जाए तो ये देरी होने की कोई ठोस वजह नहीं है.
- कनॉट प्लेस से आईटीओ जाने और आने वाले लोगों को काफी परेशानी होती है.
- इस वजह से दोपहिया वाहन वाले लोग फुटपाथ का इस्तेमाल करते हैं.
एक यात्री ने बताया कि जाम होने के कारण लोगों को परेशानी होती है. ऐसे में हम फुटपाथ का इस्तेमाल हो रहा है. जाम में फंसे होने की वजह लोगों को नहीं पता होती है. आम लोग परेशान होते हैं.
एक यात्री ने कहा कि 15 दिन हो गए हैं. कोई सुनने वाला नहीं है. गड्ढों के कारण आधे घंटे से ज्यादा जाम हो जाता है. इसके निवारण के लिए कोई सुनवाई नहीं करता है.
जिम्मेदार कौन?
PWD की जिम्मेदारी होती है, ये दिल्ली सरकार के अधिकार में आता है, मगर अधिकारियों के इसकी कोई परवाह नहीं है. आम लोग परेशान हो रहे हैं. देखा जाए तो बारिश नहीं होने के बावजूद भी लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. लोग बेवजह जाम में पंसे रहते हैं.
कब से है जलभराव की समस्या?
भारत की आजादी के बाद से ही मिंटो ब्रिज के नीचे बने अंडरपास को जलभराव की समस्या के लिए जाना जाता है. इस स्थान पर जलभराव की समस्या 1958 से है. यह इतना पेचीदा मुद्दा बन गया कि लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने कई सालों तक पूरे मानसून के दौरान इस क्षेत्र को 24 घंटे सीसीटीवी निगरानी में रखा. जुलाई 1958 में हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट में दिल्ली के तत्कालीन नगर निगम आयुक्त पीआर नायक ने कहा था कि उन्होंने मिंटो ब्रिज के नीचे जलभराव को रोकने के लिए पंप सेट लगाए हैं. यह उपाय रेड्डी समिति द्वारा सुझाए गए बाढ़ विरोधी उपायों के हिस्से के रूप में किया गया था. हालांकि, 66 साल बाद भी अब तक कोई भी एजेंसी इस समस्या का समाधान नहीं कर पाई.
1958 में बना था बड़ा मुद्दा
एमसीडी की कार्य समिति के अध्यक्ष रहे जगदीश ममगैन ने एक बार बताया था कि यह पुल एक विरासत संरचना है. कोई भी केवल इंजीनियरिंग समाधानों के साथ प्रयोग कर सकता है. यहां पहला पंप 1958 में स्थापित किया गया था, जब पुल के नीचे बाढ़ नगरपालिका सदन में एक बड़ा मुद्दा बन गया था. 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान पुल में दो और ट्रैक जोड़ने और इसकी ऊंचाई बढ़ाने के लिए नीचे से सड़क को समतल करने की योजना थी, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ सकी.
जलभराव रोकने के क्या हुए प्रयास?
जुलाई 2018 में जब दो डीटीसी बसें बाढ़ वाले अंडरपास में डूब गईं और 10 लोगों को बचाया गया, तो दिल्ली उच्च न्यायालय ने सभी संबंधित एजेंसियों को प्रयासों में समन्वय करने और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया था. हालांकि, समस्या का कोई ठोस समाधान अभी तक नहीं खोजा जा सका है. 1983 से 2017 तक नगर निगम पार्षद सुभाष आर्य ने बताया था कि उन्होंने 1947 से अंडरपास में बाढ़ देखी है. तब वह सिर्फ पांच साल के थे. इसमें गहरी ढलान है और स्वामी विवेकानंद मार्ग के साथ-साथ सीपी सहित सभी संपर्क सड़कों का पानी इसमें बहता है. इसका कोई आउटलेट नहीं है. आर्य ने कहा कि अंडरपास तब भी एक सामान्य बाढ़ बिंदु था.
from NDTV India - Latest https://ift.tt/WV5Ddho
No comments:
Post a Comment