from Live Hindustan Rss feed https://ift.tt/LxTR2dw
Thursday 19 September 2024
from Live Hindustan Rss feed https://ift.tt/LxTR2dw
भारत के स्पेस प्रोग्राम ने बीते 8 दशकों में बड़ी तरक्की की है. भारत चांद पर कदम रख चुका है. उस जगह को चूम चुका है, जहां आज तक कोई नहीं पहुंच पाया. भारत ने मिशन आदित्य के जरिए सूरज से भी आंखें मिला ली हैं. अब हम स्पेस में अपना खुद का घर बनाने जा रहे हैं. 'गगनयान' नाम से ह्यूमन मिशन लॉन्च करने के बाद ISRO साल 2035 तक अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना बना रहा है. इसे भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) कहा जाएगा. अभी अंतरिक्ष में दो स्पेस स्टेशन काम कर रहे हैं. एक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन है, जिसे रूस, अमेरिका के सहयोग से बनाया गया है. दूसरा, चीन का तियांगोंग स्पेस स्टेशन है. अपना स्पेस स्टेशन बनाने के बाद भारत अमेरिका, रूस और चीन जैसी इंटरनेशनल स्पेस प्लेयर की लिस्ट में शामिल हो जाएगा.
आइए समझते हैं क्या होता है स्पेस स्टेशन? इसमें एस्ट्रोनॉट्स कैसे दिन गुजारते हैं? स्पेस स्टेशन में कौन-कौन सी सुविधाएं होती हैं? भारत का स्पेस स्टेशन कैसा होगा? ये कब तक तैयार हो जाएगा? इसे तैयार करने में क्या-क्या चुनौतियां आएंगी:-
स्पेस स्टेशन क्या होता है?
स्पेस स्टेशन को ऑर्बिटल स्टेशन कहते है. इसे एस्ट्रोनॉट्स के रहने के लिए सभी सुविधाएं हो ध्यान में रखते हुए बनाया गया है. यानी ये स्पेस में मैन मेड स्टेशन होता है, जहां धरती से कोई एस्ट्रोनॉट जाकर रह सकता है. इस स्टेशन में इतनी क्षमता होती है कि इस पर स्पेसक्राफ्ट उतारा जा सके. इन्हें पृथ्वी की लो-ऑर्बिट कक्षा में ही स्थापित किया जाता है.
आसमान में इस दिन दिखेंगे दो चांद! महाभारत से जुड़ा है‘Mini Moon' का कनेक्शन, ISRO ने किया खुलासा
अभी कितने स्पेस स्टेशन हैं?
अप्रैल 2018 तक दो स्पेस स्टेशन पृथ्वी की कक्षा में हैं. पहला- इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) और दूसरा- चीन का Tiangong-2.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA और रूस की स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस की अगुवाई में तैयार किया गया है. अलग-अलग देशों के एस्ट्रोनॉट और साइंटिस्ट इसमें काम करते हैं. जबकि चीन के स्पेस स्टेशन Tiangong का मतलब आकाश महल है.
Tiangong पृथ्वी की कक्षा से 340 से 450 किलोमीटर दूर है. आने वाले समय में चीन अपने स्टेशन का आकार बड़ा करने वाला है.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में क्या-क्या सुविधाएं हैं?
-इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन 2011 में बनकर तैयार हुआ. इसमें एक साथ 6 एस्ट्रोनॉट रह सकते हैं.
-ISS को अमेरिका, रूस, फ्रांस समेत कुल 18 देशों ने मिलकर तैयार किया है. इसके कंट्रोल यूनिट को रूस के रॉकेट से लॉन्च किया गया था.
-इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की लंबाई 109 मीटर है. ISS न्यूनतम 330 किलोमीटर और अधिकतम 435 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी के चारो ओर चक्कर लगा रहा है.
-धरती पर ISS का वजन 4 लाख 20 हजार किलोग्राम होगा. इसे बनाने में 15 हजार करोड़ डॉलर खर्च हुए हैं.
-ISS में एस्ट्रोनॉट के रहने के लिए 6 स्लीपिंग रूम होते हैं. इसमें दो बाथरूम और एक जिम भी है.
-ISS के जिम को एडवांस रेजिस्टिव एक्सरसाइज डिवाइस (ARED) कहते हैं. यहां अंतरिक्ष यात्री वर्कआउट कर सकते हैं. लेकिन वर्कआउट करते समय वैक्यूम सिलिंडर का इस्तेमाल करना पड़ता है, ताकि वजन सिमुलेट हो. ISS में अंतरिक्ष यात्री स्कॉट, डेडलिफ्ट और बेंच प्रेस कर सकते हैं. इससे अंतरिक्ष यात्रियों का मसल मास और बोन डेन्सिटी मेंटेंन रहता है
-ISS में एस्ट्रोनॉट के खाने-पीने, पढ़ने-लिखने, सोने का सारा इंतजाम होता है. उनकी हर एक्टिविटी को धरती से मॉनिटर किया जाता है.
-ISS अभी पृथ्वी के चारों ओर 28 हजार 163 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चक्कर लगा रहा है.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को बनाने में किस मेटल का हुआ इस्तेमाल?
-इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में सबसे प्रमुख धातु एल्यूमीनियम और स्टील का इस्तेमाल किया जाता है.
-एल्यूमीनियम हल्की होती है, लेकिन कई उपकरणों में मजबूती की अधिक जरूरत होती है. इस लिहाज से स्टील का भी इस्तेमाल किया जाता है.
-इनके अलावा केवलार (ऊष्मा प्रतिरोधी सिंथेटिक फाइबर) और सिरेमिक का भी खासा इस्तेमाल हुआ. ISS में टाइटेनियम, कॉपर, के साथ कई मिश्रधातु और पॉलीमर का भी इस्तेमाल हुआ है.
कैसा होगा भारत का स्पेस स्टेशन?
-भारत के स्पेस स्टेशन में 5 मॉड्यूल होंगे. इन्हें अलग-अलग मकसद जैसे एस्ट्रोनॉट के रहने, रिसर्च के लिए, कम्युनिकेशन के लिए किया जाएगा. शुरू में इसे 3 एस्ट्रोनॉट के रहने के लिए डिजाइन किया जाएगा. बाद में इसकी कैपासिटी बढ़ाई जाएगी.
- भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन कुल मिलाकर 27 मीटर लंबा और 20 मीटर चौड़ा होगा. यानी इसका साइज एक फुटबाल मैदान (100.58 मीटर लंबा और 64.01 मीटर चौड़ा) के चौथाई हिस्से के बराबर होगी.
-इस स्पेस स्टेशन का वजन 52 टन होगा. ये पृथ्वी की निचली कक्षा में 400 किलोमीटर ऊपर स्थापित किया जाएगा.
-भारत के स्पेस स्टेशन में कई तरह के रिसर्च वर्क के लिए इंटिग्रेटेड रूम होंगे. इसमें एक लिविंग क्वार्टर्स होगा, जहां 3-4 एस्ट्रोनॉट के रहने की जगह होगी. इसका लैबोरेटरी स्पेस साइंटिफिक प्रयोगों के लिए होगा. इसके कंट्रोल सेंटर में स्टेशन की मॉनिटरिंग और आपरेशंस को देखने के साथ एक्सपेरिमेंट्स को चलाने के काम होगा.
-ISS की तरह भारत के स्पेस स्टेशन में भी एक कपोल होगा. यानी बड़ी सी खिड़की. इससे एस्ट्रोनॉट स्पेस से धरती को देख सकेंगे. साथ ही स्पेस में हो रही एक्टिविटी की मॉनिटरिंग कर सकेंगे.
-BAS डॉकिंग और बर्थिंग सिस्टम से भी लैस होगा. इससे स्पेसक्राफ्ट बड़ी आसानी से स्टेशन से जुड़ जाएंगे.
-यही नहीं, BAS बिजली पैदा करने के लिए रोल-आउट सोलर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करेगा.
शिव शक्ति प्वाइंट को चूमेगा भारत का चंद्रयान-4, ISRO चीफ ने बता दिया पूरा प्लान
ISRO के अपकमिंग प्रोजेक्ट्स क्या हैं?
-ISRO ने मार्च 2028 में वीनस मिशन यानी शुक्र ग्रह पर एक स्पेस क्राफ्ट भेजने का लक्ष्य बनाया है. इस स्पेस क्राफ्ट का नाम शुक्रयान होगा. किसी ग्रह की ओर भारत का ये दूसरा मिशन होगा. इससे पहले भारत 2014 में मार्स ऑर्बिटर मिशन भेज चुका है.
- शुक्रयान मिशन के लिए 1236 करोड़ रुपये मंज़ूर किए गए हैं. शुक्रयान शुक्र ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाने के बाद उसकी सतह की स्टडी करेगा. उसके वायुमंडल, बादलों, उसकी धूल, उसमें उठने वाले ज्वालामुखियों का अध्ययन करेगा.
-इसके अलावा चंद्रयान 4 मिशन के तहत अगले 36 महीनों में 2014 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं. इस मिशन के तहत पांच मॉड्यूल होंगे, जिन्हें दो अलग-अलग समय पर लॉन्च किया जाएगा.
-चंद्रयान 4 मिशन चांद की सतह पर स्पेसक्राफ्ट उतारने, चांद की मिट्टी के सैंपल जुटाने, उन्हें वैक्यूम कंटेनर में स्टोर कर वापस लाने से जुड़ा है. ये मिट्टी उस जगह से लाई जाएगी, जहां चंद्रयान 3 उतरा था. इस जगह को शिव शक्ति पॉइंट कहा जाता है.
-इसी के तहत चांद की कक्षा में दो अंतरिक्ष यानों के एक दूसरे से जुड़ने और अलग होने की प्रक्रिया भी शामिल होगी, जिसकी कोशिश भारत ने अभी तक नहीं की है. ये सभी कोशिशें 2040 तक चांद पर किसी भारतीय को उतारने की दिशा में की जा रही हैं.
-केंद्रीय कैबिनेट ने इसके अलावा किसी भारतीय अंतरिक्ष यात्री को भेजने से जुड़े गगनयान मिशन को जारी रखने और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने लिए 20,193 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है.
-भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के पहले मॉड्यूल को शुरू करने के लिए दिसंबर 2029 तक की समय सीमा रखी गई है, जिसके तहत सभी लॉन्च और ऑपरेशन पूरे करने होंगे.
-इससे पहले गगनयान मिशन के तहत दो मानवरहित और एक मानवयुक्त मिशन को मंज़ूरी दी जा चुकी है.
-जिस चौथी परियोजना को सरकार ने मंज़ूरी दी है वो है Next Generation Launch Vehicle सूर्य है. ये लॉन्च व्हीकल मौजूदा GSLV और PSLV की जगह लेगा. अभी भारत 10 टन वजन तक के उपग्रहों को भेजने की क्षमता रखता है, जो अगली पीढ़ी के लॉन्च व्हीकल से 30 टन हो जाएगा.
क्या कहते हैं ISRO चीफ?
भारत सरकार ने अंतरिक्ष विज्ञान की दिशा में जो ये लक्ष्य तय किए हैं, वो काफी महत्वाकांक्षी हैं. इन्हें पूरा कैसे किया जा सकेगा? इसी सिलसिले में NDTV ने ISRO के चेयरमैन डॉ. एस सोमनाथ से खास बात की. चंद्रयान-4, चंद्रयान-3 से कितना अलग होगा? इसके जवाब में एस सोमनाथ कहते हैं, "चंद्रयान-3 में हमने चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग की. प्रज्ञान रोवर ने कई साइंटिफिक एक्सपीरिमेंट किए. चंद्रयान-3 ने चांद के जिस जगह पर सॉफ्ट लैंडिंग की थी, चंद्रयान-4 का मिशन वहीं से शुरू होगा. चंद्रयान-4 शिव शक्ति पॉइंट (चंद्रयान-3 के सॉफ्ट लैंडिंग वाली जगह) की मिट्टी, चट्टानों और धूल के सैंपल कलेक्ट करेगा. 2040 तक चांद पर भारतीय को उतारने की दिशा में चंद्रयान-4 अहम मिशन है."
नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल क्या है?
इसके जवाब में एस सोमनाथ कहते हैं, "अभी हम दो तरह के लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल करते हैं. PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल). अब हम नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल यानी NGLV के निर्माण पर विचार कर रहे हैं. इसे जियो स्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट में 10 टन की पेलोड कैपासिटी के साथ लाया जाएगा. ये मिथेन-इथेन और क्रायोजेनिक गैस से चलेगा."
भारत ने स्पेस स्टेशन मिशन के लिए चुना प्राइम एस्ट्रोनॉट, ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को मिली कमान
from NDTV India - Latest https://ift.tt/bSIxRDP
Wednesday 18 September 2024
महोबा जनपद के पनवाड़ी विकासखंड में क्योलारी नदी का जलस्तर करने से जहां एक तरफ दर्जनों गांव का आवागमन बाधित हो गया तो वहीं लापरवाही के चलते एक डंपर नदी में बह गया. गनीमत रही कि चालक और क्लीनर ने तैर कर अपनी जान बचाई है. डंपर चालक की जल्दबाजी हादसे का कारण बनी है पानी में डूबी पुलिया पार करते समय पूरा डंफर पानी में समा गया. जिसका वीडियो भी कैमरे में कैद हुआ है.
आपको बता दें कि बीते 24 घंटे से लगातार हुई मूसलाधार बारिश के चलते पनवाड़ी विकासखंड क्षेत्र के बुढ़ेरा गांव से निकली क्योलारी नदी उफान में है. जिसके चलते नदी के आसपास तकरीबन एक दर्जन गांव का आवागमन बाधित हुआ है. इसी बीच बताया जाता है गांव के निकास के लिए नदी के ऊपर बनी पुलिया जलस्तर बढ़ने के कारण जलमग्न हो गई.
जिससे आवागमन ठप हो गया, लेकिन बताया जाता है कि डंफर चालक जबरन लापरवाही के चलते डंपर को पानी में डूबी पुलिया से निकालने का प्रयास करने लगा और अचानक वाहन से नियंत्रण खो बैठा इससे पहले चालक कुछ समझ पाता है देखते ही देखते डंपर ट्रक चालक की जल्दबाजी के चलते सीधा नदी के पानी में समा गया.
स्थानीय ग्रामीण बचाव के लिए चिल्लाते रहे लेकिन पूरा डंपर पानी में डूबता देख चालक और क्लीनर ने तैरकर अपनी जान बचाई है. स्थानीय लोग बताते हैं कि इस घटना के दौरान ट्रक चालक को पुलिया पार करने के लिए मना किया गया लेकिन अपनी जल्दबाजी के कारण उसने अपनी जान जोखिम में डाली है जिसके चलते हैं हादसा घटित हुआ है. जिसका वीडियो भी कैमरे में कैद है .
बताया जाता है कि क्यौलारी नदी पर छोटा सा पुल होने के कारण दर्जनों ग्रामीण क्षेत्र का आवागमन जिला मुख्यालय एवं ब्लॉक से संपर्क टूट गया है. जिसके चलते लोगों को निकलना मुश्किल हो गया है वहीं अगर किसी भी व्यक्ति को कोई बीमारी की स्थिति होती है तो क्योंलारी नदी में पुल छोटा होने के कारण निकलना मुश्किल हो रहा है.
नदी में जल स्तर बढ़ने की सूचना पर राजस्व विभाग से नायब तहसीलदार अभिषेक मिश्रा, नायब तहसीलदार बदलू प्रसाद, लेखपाल बृजेंद्र कुमार, लेखपाल शिवकरण, लेखपाल मेघा ने ग्रामीण क्षेत्र का दौरा किया एवं सभी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों से अपील की नदी का जलस्तर बढ़ रहा है कोई भी नदी को पर ना करें.
राजस्व टीम के द्वारा महोबकंठ क्षेत्र एवं ग्राम बैदों में निस्वारा व बुडेरा में नदी घाटों पर निरीक्षण किया एवं सभी से अपील की नदी का जलस्तर बढ़ रहा है जिससे आप लोग नदी को पर ना करें एवं बच्चों को नदी के बढ़ते हुए पानी के पास न जाने दें जिससे कोई अनहोनी ना हो.
from NDTV India - Latest https://ift.tt/3ILpyGA
from Live Hindustan Rss feed https://ift.tt/WAzuN2D
from Live Hindustan Rss feed https://ift.tt/JnWh18p
Tuesday 17 September 2024
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 2047 तक "विकसित भारत" के बड़े लक्ष्य के साथ आने वाले दिनों में सरकारी नीति-निर्माण की प्रक्रियाओं में बड़े सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का फैसला किया है. दरअसल, पिछले 10 साल और 100 दिन प्रधानमंत्री रहते नरेंद्र मोदी ने सरकारी मशीनरी को अधिक कुशल, जवाबदेह और उत्तरदायी बनाने के साथ ही प्रो पीपल और गुड गवर्नेंस की व्यवस्था को आगे बढ़ाने की कवायद जारी रखी है. इन 10 वर्षों और 100 दिनों में पीएम मोदी ने केंद्र सरकार के काम करने, नीतियां बनाने और केंद्रीय योजनाओं के कार्यान्वयन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए अहम सुधार लागू किये हैं. पहले 100 दिनों में मोदी सरकार ने 15 लाख करोड़ से ज्यादा की योजनाओं को मंजूरी दी है. अब इन योजनाओं को लागू करने की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाने पर जोर है.
मोदी 3.0 के 100 दिन पूरे होने पर प्रधानमंत्री मंगलवार सुबह भुवनेश्वर पहुंचे और प्रधानमंत्री आवास योजना - शहरी के लाभार्थियों के साथ सीधे संवाद किया. दरअसल, मई 2024 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी ने सरकारी कामकाज के तरीके में बड़े सुधर और गुड गवर्नेंस को ग्रासरूट तक ले जाने की कवायद शुरू की थी. सरकारी योजनाओं की रूपरेखा तय करने, योजनाएं के कार्यान्वयन की प्रक्रिया के डिजिटाइजेशन के साथ-साथ उसकी मॉनिटरिंग और अफसरशाही की जवाबदेही तय करने के लिए नए मानक तय किए गए.
19 मई 2024 को एनडीटीवी को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने ब्यूरोक्रेसी में बदलाव को जरूरी बताते हुए प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार के बड़े संकेत दिए थे.
अब मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में तैयारी इस पहल को और आगे बढ़ाने की है. केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल पिछले 100 दिनों में 26 दिन अपने मंत्रालय के अलग-अलग विभागों के कामकाज की समीक्षा के लिए 11 राज्यों का दौरा कर चुके हैं. बघेल कहते हैं कि गवर्नेंस को ग्रासरूट तक ले जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है.
ग्राउंड जीरो पर जाकर जनता से बातचीत कर रहे : बघेल
एसपी सिंह बघेल ने एनडीटीवी से कहा, "मोदी 3.0 सरकार में सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ मंत्रालयों में व्यवस्था परिवर्तन भी दिखाई पड़ रहा है. प्रधानमंत्री मोदी का एजेंडा है : गवर्नेंस को ग्रासरूट पर ले जाने का और यह निर्देश मंत्रियों को दिया गया है. अब मंत्री शास्त्री भवन, कृषि भवन या निर्माण भवन में सिर्फ काम नहीं करते वह ग्राउंड जीरो पर जा कर भी काम करते हैं... हम ग्राउंड जीरो पर जा रहे हैं और जनता से सीधे बातचीत कर रहे हैं जो लोकतंत्र में बेहद जरूरी है. सरकार जनता के लिए ही चुनी जाती है".
अब सरकारी योजनाएं लैब से लेकर लैंड तक सही तरीके से पहुंचे, इसके लिए लैंड रिकॉर्ड से लेकर सरकारी कामकाज के डिजिटाइजेशन पर फोकस और बढ़ाने की तैयारी है. बघेल कहते हैं, "अब लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधे पैसे पहुंचते हैं, पहले राजीव गांधी ने कहा था कि सिर्फ एक रुपये में 15 पैसा ही लाभार्थियों तक पहुंच रहा है. 85% तक सरकारी फंड्स अधिकारियों और प्रशासन में बंट जाते थे. प्रधानमंत्री मोदी ने सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार को रोकने का काम किया है. अब एक बटन दबाते ही करोड़ों लाभार्थियों के बैंक खातों में सरकारी योजनाओं का पैसा सीधे पहुंच रहा है".
सरकारी प्रोजेक्ट्स को तेजी से पूरा करने पर फोकस
फोकस इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में सरकारी प्रोजेक्ट्स को तेजी से पूरा करने पर भी है. नेशनल इंडस्ट्रियल कॉरिडोर डवलपमेंट कॉर्पोरेशन यानी NICDC को 12 नए स्मार्ट इंडस्ट्रियल शहर बनाने की जिम्मेदारी दी गई है.
NICDC के सीईओ रजत कुमार सैनी कहते हैं कि इसे इम्प्लीमेंट करने का रोड मैप तैयार करना शुरू कर दिया गया है. सैनी ने एनडीटीवी से कहा, "हमने 12 नए स्मार्ट इंडस्ट्रियल शहरों के निर्माण के लिए मौजूदा वित्तीय साल में ही टेंडर जारी करने का फैसला किया है, जिससे इसी साल इन नए स्मार्ट इंडस्ट्रियल सिटीज के कंस्ट्रक्शन का काम शुरू हो सके. इस प्रोजेक्ट के लिए 26,000 करोड रुपए के फंड्स को मंजूरी दी गई है... हमने अभी तक करीब 28,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है"
अब देखना अहम होगा कि मोदी सरकार इन योजनाओं को किस तरह तेजी से आगे बढ़ाती है.
from NDTV India - Latest https://ift.tt/XExkAUJ
from Live Hindustan Rss feed https://ift.tt/IiuPA9J